Thursday, September 16, 2010

गढ़वाली गीत
देखा देखा देखा रे
ठग्या ननु पदान यखम
भलु छै यु पर
फसी गियाई कनि
शरम
वे दिन त ननु पदान
खूब जोशम छाई
हु णु भी छाई नि किले
भाई चाटिंग कैर्याई

हैका दिन क्या बुन दिदा
खूब मजा आई
नौनी समझ जै था वेला
नौनु निकली ग्यई

भीतर लुक्यों ननु पदान
कनिकै अलु अब भैरम

देखा देखा देखा रे
ठग्या ननु पदान यखम
भलु छै यु पर फसी
गियाई कनि शरम

एक दिन ननु पदान कु
एक मेसेज आई
वे नंबर फार ननु पदाना
ला फ़ोन घुमाई

दगडिया बनौलू तुम थै मी
नौनी ला बवाल चडम
उछली ग्यई ननु पदान
अब आलू मजा जीणम

बथायाँ खाता म ननु पदान
रुप्प्य धैरी आई
घार म ऐगे ननु पदान
पखड फ़ोन फिर हथम

नंबर घुमाई की दिखंद
नंबर नी यु यखम

देखा देखा देखा रे
ठग्या ननु पदान यखम
भलु छै यु पर फसी
गियाई कनि शरम

Wednesday, September 15, 2010

गढ़वाली गीत

न कैर मेरी फिकर हे माँ
मी यख ठिक सिकी रौलू

सिनी रैली तू तख़ रूणी
यख मि कसिकैकी खौलू

लगी जाली नौकरी भी हे माँ
नि कैर अब तू बौलू

द्वी चार दिन की बात
मन्योडर तीखानी भी भी औलू

न कैर मेरी फिकर हे माँ
मी यख ठिक सिकी रौलू

सिनी रैली तू तख़ रूणी
यख मि कसिकैकी खौलू

नि खै तू से कोदा झुन्गरू
बाजार भाटी ल्हें ले गोभी अलू

अब आला हमारा भी दिन
सदनी एक्सनी नि रालू

न कैर मेरी फिकर हे माँ
मी यख ठिक सिकी रौलू

सिनी रैली तू तख़ रूणी
यख मि कसिकैकी खौलू

न खोज मीकु ब्वारी हे माँ
झणी कन मीलालू ससुरालू

नि छि अज्काल ते नौनी जनि
हद से भी छि यु ज्यादा चालु

न कैर मेरी फिकर हे माँ
मी यख ठिक सिकी रौलू

सिनी रैली तू तख़ रूणी
यख मि कसिकैकी खौलू

न कैर तू अब ज्यादा जिद
न भेज सीं थै न हो मयालु

क्या पाई तिल ब्वारी कैरिकी
खैरि खाणी जाणी छै खाल्युंन

न कैर मेरी फिकर हे माँ
मी यख ठिक सिकी रौलू

सिनी रैली तू तख़ रूणी
यख मि कसिकैकी खौलू

मोरी गे तू यखुली मेरी माँ
कैकी समणी जौं मि रूलू

छवटू भलु कनु भली छै मि
किले मि थै तिल झी पालूँ

न कैर मेरी फिकर हे माँ
मी यख ठिक सिकी रौलू

सिनी रैली तू तख़ रूणी
यख मि कसिकैकी खौलू

मेरी माँ को ये गाना भेंट जो मुझे इस दुनिया में इस तरह छोड़ गई
गढ़वाली गीत
जींस पैंट तेरी सुवा
किले इतगा टैट

जांदि कख छै सुवा
व्हेकि रैट पैट

खूब बिराज दीन्द
ते फार काली टॉप

त्यार अगनी सुवा
सबी छोरी फिलोप

गोरु रंग तेरो लागू
खूब भालू उज्यालू

काली रात म जनु
होलू जल्युं मुछ्यलू

देखुंदु जब सुवा
तेरी पतली कमर

जुवान व्हे गे सुवा
तेरी बाली उम्र
गरीबी

गरीबी को पहचानो
किसे आप कहेंगे गरीब
ढूढ़ने की जरुरत नहीं
मिलेंगे हमेशा करीब

यहाँ हर कोई गरीब है
देखे नित गरीबी पडोसी में
खुद में कब झांकेगा बन्दे
मत रह इस मदहोशी में

कर प्रतिशप्रधा खुद से भी
मत देख सदा दांये बांये
देख पीड़ा खुद की भी
देख बच्चे तेरे भी बिलबिलाये

भर्मित न हो क्यों उदास है तू
देख ईंट गारे के इंसान
न टूटे फिर भी तेरा तेरा
भ्रम चले आना दारू की दुकान

काम करे तू दिनभर
और हर शांय मिले तुझे भी तेरा पैसा
मिलेंगे तब उस रोज
सोचेंगे क्यों न हम भी रोज करें ऐसा

बेहतर होता कि गरीब पर नहीं
कुछ लिख लेते गरीबी पर
होता इसमें जनहित
दिखता असर तुझ पर और तेरे करीबी

पर मजदूरी को दे नाम गरीबी
न करो पहाड़ियों के हित पर प्रहार
न पढ़ सके हर पहाड़ी बच्चा
क्या करोगे तुमक्या करेगी सरकार
सत्यदेव के तुक्के
कवि सम्मेलन पर क्यों
जड़ा इतना बड़ा ताला
देदो है कोई खबर
या दो किसी का हवाला

समझिये आप युवा कवि के
भीतर की ज्वाला
उसकी मासूमियत है सच्ची
है दिल से भोलाभाला
कहा छिटके सभी युवा
क्यों सबने नाता तोड़ डाला
रोजमर्रा में हैं ब्यस्त
दिखा है या कहीं और उजाला
किसने लगाई सेंध यहाँ
किसका या ये गड़बड़झाला
गड़बड़ी नहीं है ये तुच्छ
लगता है ये बड़ा घोटाला
चाह रहती है की लिखूं
इस फोरम में नित नित नया
अपनों के बीच है सुरक्षा
ये नहीं कि हर गलती पर गया
सवाल नाक का बन जाये
ऐसा नहीं होता घर हरेक
मेरा पहाड़ है उपवन
हरियाली और दे खुशबु यहाँ प्रत्येक
हैं कई प्रसंसक निशंक के
कुछ घोर विरोधी नौछमी के
मुझे भी मिलते रहते
चाहक मेरे भी चाहे हों गिनती
के इस आँगन में खुशियाँ लाये बहार
इस चाहत में रहूँ सदा
बसते हो तुम ह्रदय में मेरे
पर याद करलिया करो यदाकदा
सावन है घटायें हैं बरसेंगी
सुनाएंगी अफ़साने मेरे यार के
लगी हो बाहर रिमझिम वर्षा
गुनगुनालो गीत बीती बार के
सम्मलेन के प्रतियोगी पहुचे "जागरण"
जाने शब्दों का मोल कभी
मुफ्त में भी बरसालो
नित राह देखू आपकी मै डोल डोल
अभी मेरी करें छुट्टी स्वीकार
मेरा पहाड़ के इस मंच पर,
मिला मौका लिखने का,
निकालने दिल का गुबार।
मेहता जी कृपा आपकी,
आशीष पंकज दा का,
दीपक सुन्दर, राजे का आभार॥
जीवन है तो ऐसे भी जी लेंगे,
लड़ेंगे हर लड़ाई,
चाहे लगी रहे कष्टों की भरमार।
ऐ जिंदगी हों पड़ाव तेरे जितने भी,
तरेंगे हम,
मौत न कर सके तुझ पर प्रहार॥
उम्र है तो चलेगी बिपरीत काल के,
लड़ेंगे अश्त्र हमारे,
सेवा सत्य और सदाचार।
बचपन था बीता जैसे भी,
कैसे जियें करेंगे तय खुद,
अब आएगी जीवन में बहार॥
कमजोर यहाँ हर है कोई हम भी है,
अपनाएंगे कमजोरी को,
होगा उसमे भी सुधार।
ले चुके हैं कसम,
न होगा, हार शब्द शब्दकोष में,
करेगा समय हमारी जयजयकार ॥
चला हूँ नए सफ़र में मै,
हूँ अभी अकेला अभी तक,
मित्र और भी मिलेंगे नानाप्रकार।
होगा समयाभाव,
कम मिल पाऊँ शायद,
होंगे आप स्मृति में,
अभी मेरी करें छुट्टी स्वीकार॥
गढ़वाली गाना

कख छी ज्वान लौंडा
किले नि आन्दा इनै अजकाल

कख गैन नया कवि
पोड़ी गे नि यख बस्काल

अब नि ऐला ता कब ऐला
तब नि बुल्याँ यु कैरियाल

देखा देखा कनि च बरखा
कन हुयां नि यखा का हाल

पैसा जू भी दिया सरकार ला
देखा सबी नेताओं ला खयाल

कुडू टूट म्यारू क्या बुन
पैसा वूंल काका थै दियाल

मनखी छोड़ा देवता नि छुड़ना
पुजाई फर वूंल च स्टे दियाल

कनिकै कला पूजै अब
बुगाटिया वूंल हर्चायेयाल
गढ़वाली गीत स्वरचित

म्यार गान्मा पूजै च रै
ऐ जय्याँ भोल सुबेर
टक लगैकी ऐजय्याँ
भेजण पुड्यां नि खुजेर

म्यार गान्मा पूजै च रै
ऐ जय्याँ भोल सुबेर

चंखी दादा तू भी ऐई
चम् ऐ जैई नि करि देर
फजिती काकी थै भी लेई
शर्म नि करि इत्गा नि डैर

म्यार गान्मा पूजै च रै
ऐ जय्याँ भोल सुबेर

ग्वाबिंदी काकि थै ले
चम् पाणि भ्वन हमर पंधेर
चौंफ्य फूफा कनै गाई
अज्काल बन्युं च जू ग्वेर

म्यार गान्मा पूजै च रै
ऐ जय्याँ भोल सुबेर

बोकटिया सिरयुंच हमरु
बांठी मिलाली एक एक सेर
चम् चम् ऐ जय्याँ
तब नि बुल्याँ क्या अंधेर

म्यार गान्मा पूजै च रै
ऐ जय्याँ भोल सुबेर
ढेर सारी बधाई जन्मदिन पर
करें स्वीकार कैलाश भाई
हैं सपूत आप पहाड़ के
खूब कीर्ति है आपने पाई

पहाड़ हित में सदा रहें आप
खूब आवाज है आपने उठाई
देख आपका पहाड़ प्रेम
मेरी भी आँख भर आई

हों साकार हर ड्रीम आपका
गर्जिया से है रट लगाई
करें आप तरक्की कई गुनी
बढ़ती रहें आपकी कमाई

है जूनून गजब का आप में
आप में दी मुझे लौं दिखाई
शुन्य से हो रहे पहाड़ नेतृत्व की
आप से हो पाए भरपाई

मिलन को हुआ अरसा
दो दर्शन पुनः दो दिखाई
इस बार न रहे कोइ कसक
खूब बतियाएंगे दोनों भाई

मनाएं आप जन्मोत्सव
हो धूमधाम बांटें मिठाई
मेरी तरफ से पुनः
स्वीकार करें हार्दिक बधाई
कैलाश भाई को सत्यदेव की तरह से तुच्छ भेंट

Friday, September 10, 2010

चला दगडियो अपरा घार बस्गाल लग्युं वख झमाझम
कनु व्हालू म्यारू घर गांवु बरखा टुटी नि हूणी कम
टुटी गिनी सब्या बाटा कनिके पौछला अपरा गाँव
कभी जौला गाड़ी म कभी पैदल कभी काटिकी बा
गाँव गल्या म व्हाला लोग लग्याँ व्हाला हमारा सार
बचि जाला गोर भैंसा द्वी चार पुंगडि कूडि तुमारा भ्वार
खुदेड हुन्द पराण आन्द मिथई जब बालपन अपुरु
कन भलु छाई भ्वारयुं गांवु खाली व्हे गयई पुरु
चला दगडियो अपरा घार बस्गाल लग्युं वख झमाझम
कनु व्हालू म्यारू घर गांवु बरखा टुटी नि हूणी कम

Wednesday, September 1, 2010