Saturday, August 28, 2010


कलिंका देवी मंदिर से लिया गया दृश्य


कलिंका देवी मंदिर से लिया गया दृश्य


कलिंका देवी मंदिर की फोटो



कलिंका देवी मंदिर की फोटो


कलिंका देवी की फोटो


कलिंका देवी की फोटो
अभी मेरी करें छुट्टी स्वीकार
मेरा पहाड़ के इस मंच पर, मिला मौका लिखने का, निकालने दिल का गुबार।
मेहता जी कृपा आपकी, आशीष पंकज दा का, दीपक सुन्दर, राजे का आभार॥
जीवन है तो ऐसे भी जी लेंगे, लड़ेंगे हर लड़ाई, चाहे लगी रहे कष्टों की भरमार।
ऐ जिंदगी हों पड़ाव तेरे जितने भी, तरेंगे हम, मौत न कर सके तुझ पर प्रहार॥
उम्र है तो चलेगी बिपरीत काल के, लड़ेंगे अश्त्र हमारे, सेवा सत्य और सदाचार।
बचपन था बीता जैसे भी, कैसे जियें करेंगे तय खुद, अब आएगी जीवन में बहार॥
कमजोर यहाँ हर है कोई हम भी है, अपनाएंगे कमजोरी को, होगा उसमे भी सुधार।
ले चुके हैं कसम, न होगा हार शब्द शब्दकोष में, करेगा समय हमारी जयजयकार ॥
चला हूँ नए सफ़र में मै, हूँ अभी अकेला अभी तक, मित्र और भी मिलेंगे नानाप्रकार।
होगा समयाभाव कम मिल पाऊँ शायद, होंगे आप स्मृति में, अभी मेरी करें छुट्टी स्वीकार॥

Friday, August 27, 2010

Thursday, August 19, 2010

सुन्दर जी बात करे उचित जनता है भोली
किस जनता की करें बात जो बोतल की होली
कहे नेगी जी "हाथल हुसकी पिलाई फूल ला पिलाई रम"
अपना भला बुरा न सोचे इसी बात है है गम
पहाड़ अभी तक बच्चा है बिन शिक्षा के है नादान
पलायन कर जाते आप हम पढ़ लिख कर हो विद्वान
साचो क्यों नहीं पनपा ज्ञान क्यों नहीं हैं स्कुल में शिक्षक
रहे सदा अज्ञानी पहाड़ है किसका ए प्रयास अथक
पढ़ा सन पिच्यासी में तब थी स्कूल में विज्ञान बाइलौजी और गणित
आज न बाइलौजी विज्ञान गणित वहां पड़ें आर्ट्स बने पंडित

Wednesday, August 18, 2010


है वर्णन में यहाँ ऐसा निर्धन घराना, गुजारा था कठिन जीवन था दुशवार, थे कुटुंब में पांच जन पिता माता भगिनी तीन, न था संरक्षक के देह में जोर कम सी थी जमीन , पर था तब भरा पूरा गाँव थी सबकी आजीविका , थी खेती किसीकी खूब आता था मनीआडर किसी का , तभी उस परिवार की थी एक बेटी पढने में निपुण , कर लिया उसने १२ वीं पास प्रथम श्रेणी

Monday, August 16, 2010

याद आती है मेरे पहाड़ की मुझे तो हर रोज
कठिन है वहां का जीवन फिर पर न लगे बोझ
ठंडक हमेशा साथ निभाती न कोइ कसरत उकल उन्धार
सभी सगे साथी सभी अपने वहां कोइ इस धार कोइ उस धार
अब तो गाँव गाँव सुन्दर सड़क भी आ गयी है निकट
बूढ़े बीमारों की सेवा में करें उन्हें घुमाओ सरपट
फोन लगाओ जीप मांगो जब भी हो कहीं जाने का मन
गाँव जाते रहो घुमो पहाडों पर न कोई अब अड़चन
सुंदरजी आपका तरीका पसंद आया
बच्चे के हाथ से कैसे ब्लेड छुड़ाया
जानने लगा मै कि क्या है लिखना और क्या नहीं
आप का सुक्रिया कैसे करूँ अदा पकड़ा सही
राजे सिंह जी से करू हाथ जोड़ मै बिनती
मेरी कोइ बुरी तमन्ना नहीं थी
आजकल खेल का मिजाज ही है कैसा
मैच भले न हो अच्छा मगर वसूलना है पैसा
सच में रोग है ये प्रेम ये मैंने आज जाना
दोनों प्रेमियों में है कविता का खजाना
एक दूजे को हिम्मत दे देख मै नादान सन्न
लड़ते हो या खेल है ये या ये दोनों का फन
चलता रहे तुम दोनों का ये फंसना फ़साना
मुझे भी नित मिलता रहेगा नया अफसाना
राजे सिंह जी बिच बिच में लगाके ठुमके
मै भी सोचूं आयटम बॉय है इस क्रिकेट के
खूब चल रहा शीत द्वंध कलम के दो वीरों का
मजे लुट रहा सत्यदेव चमक देख हीरों का
तेज है दीपक में तो आभा सुन्दर की अमिट
देख मेरे चक्षु असमंजस में ऐसा मुझे प्रतीत
एक वार करे दूजा कटे शब्द की बारिश हुई
स्तब्ध हूँ मैं भी भीगूँ एक और गुजारिश हुई
प्रेम मन्दाकिनी में खूब लगाऊं दुबकी
तुम जैसा मै भी हो जाऊं अभिलाषा मेरे मन की
कबूतरी जी आप हो इस धरा पर संस्कृति की माला
आपने इस देवक्षेत्र तो एक धागे में पिरोडाला
सभी करें बिनती एक सुर में उस विधाता से
आपके स्वास्थ्य की गुजारिस है उस दाता से
है हमें विस्वास अटूट उस दाता के न्याय पर
देगा सबको अच्छी खबर आपको ठीक कर
सुन्दर जी आपने तो हमें शब्द्विहीन किया
कहाँ से सुरु करू कैसे कहू कहे ये नौसिखिया
आपकी कविता हमें लेती है मंत्रमुग्ध
खाना पीना तक भूल बैठे बैठे भूल सुध बुध
दीपक जी तो सच में दीपक हैं अच्छा इनका मेल
खूब फैलाएं उजाला जलाएं खुद का तेल
राजेसिंह जी सच में नरेश हैं इस कवितामंडल के
जगह दें अपने महल में पंछी को हम जैसे भूले भटके
आप कवि हैं उच्च दर्जे के शोभित आपसे मेरा पहाड़
मुझे जैसे तुच्छ कवि का भी लग गया जुगाड़








दीपिका जी हों आप शतायु ये ह्रदय से है चाह
सुगंध बिखेरे सदा कुदरत आपकी हर राह
हर सावन घटायें घनघोर बरसें झूमे हर डाली
हो मंगलमय जीवन तुम्हारा लगे जैसे रोज दिवाली
जीवन के इस पर्व को आप मेरापहाड़ पर भी मनायें
दीपिका जी आपको जन्मदिन की ढेर सारी शुभकामनायें

Saturday, August 14, 2010

भागना है आसान यही मुझे लगता है अभी भी
पूर्वज भी भागते आये थे इस शायद तब भी
उन्होने देखा था मस्त मौसम और सौंदर्य उस धरा का
न बहा पाया मै भी पसीना लगा मुझे जीवन मरा मरा सा
सोचूं भाग के शहर जाऊं छोड़ उकाल उन्धार
शहर आके जेब खाली ये कैसा मजधार
करूँ चाकरी दफ्तर में किसी के बाबू
न करू तो पेट की आग हो रही बेकाबू
बुझी आग पेट की न पर बुझा पाया मै मन की
देख प्रदुषण गर्मी गन्दगी और बास इस तन की
सोचा छोड़ इस भारत चला जाऊं कहीं और
भागते भागते कट गयी उम्र आया नया दौर
तब था आसन भागना क्यों तब था मै और मेरा थैला
आज मै हूँ मेरा है थोडा सामान और साथ में लैला
सही कहते हैं आप जो भी कहा आपने
खोट दिखा हमें भी हमेशा सरकार में
मै यहाँ ये भी कहूँगा खोट हममे भी कर गया घर
डंडे की आदत गयीनहीं काम किया सिर्फ मारे डर
हमने ही बेचा वोट सिर्फ भाव था उनका
हमने ही भड़काया सम्प्रदाय को सिर्फ ताव था उनका
हमने ही डाले पैसे भ्रष्ट बाबू की दराज में
हमें भी चाहिए थी गाड़ी अपने गैराज में
आज ये बाते न करो मिल आजादी का जश्न मनाओ
शर्मायेंगी शहीदों की आत्माएं न एक दुसरे का घर जलाओ
आजाद हूँ मै पर आजादी इसे कहोगे
सेवक है कौन ये आज नहीं कहोगे
ये भी एक मा है भारत में देखो इसकी दशा
लालू के बिहार में नितीश के राज में
लोकतंत्र की ऐसी दुर्दशा

आजाद हैं हम मिला देश हो गुलामी से छुटकारा
१५ अगस्त १९४७ को हुआ देश आजाद हमारा
है इतिहास गवाह हुए थे किस तरह गुलाम हम
लालच घृणा मौकपपरास्ती और अहम्
तब राजा थे अब नेता हैं हमारे सरपरस्त
पर अब लोकतंत्र है जिसकी अभी हालत खस्त
कसम लें आज बुरी चीजें पास न फटकने दें हम
एक दुसरे की हिम्मत से आओ आगे बढ़ें हरकदम
आजादी की खुसी का चलो मनाएं जश्न
बांटो मिठाई मिलो गले कल पर छोडो प्रश्न
सभी मेरा पहाड़ प्रेमी आज एक सुर में गएँ
सत्यदेव की और से आजादी बहुत शुभकामनायें

Friday, August 13, 2010

दीपक जी आज नहीं आये मेहता जी इस गली
कही इस अनाड़ी ने कुछ बेतुकी तो नहीं चली
न हुए वे सुबह से रूबरू न मिला सन्देश
अब आप चाल चलो ताकि न बन जाय कोइ केस
यु तो जानबूझ कर न किया हमने कोई फ़साना
शब्दों के इस चक्रब्यूह से अब आप ही हमें बचाना
बच्चा है जान के छोड़ दो कहना उनसे आप
माना कि है मांसाहारी पर नहीं किया कोई पाप
पंकज दा दे दिया अभयदान इस नशे में थे हम धुत
कब किस वक़्त चूक गया ये मुर्ख
दीपक जी इस कच्चे कवि को दिया आपने सुधार
फिर भी न कर पाया ये आपका सपना साकार
गलतियों पर गलती ऐसा भी भला होता है
अब कर दो कृपा ये नया कवि रोता है
देदो वो भस्म जो कर दे मेरी नय्या पार
ड़ोज थोडा कम देना ताकि न हो आज बुखार
कर दो इस कवि की लेखनी पर करिश्मा
नहीं तो बहुत रोयेंगे पाठक बना देंगे कीमा
आओ यारो कुछ धमाल करे कभी मिल बैठें बातें चार करें
न खींचे एक दूजे की हम चादर दें हर इंसान को आदर
पैदा हुए इंसान फिर जानवर को क्यों करें कॉपी
न तू खींच मेरा साफा न मै तेरी टोपी
अहम् ही हमारा है दुश्मन जान ले मेरे यार
चल निकलते हैं उसकी ओर तू भी होले तैयार
लगे तुझे कि ओ तेरे बिपरीत खड़ा है
मत सोच ऐसा क्योंकि ये मैदान बहुत बड़ा है
खाना ख़तम हो जायेगा ऐसा सोअच के मत बैठ
है पतीला बहुत बड़ा खुरचन से भी भर जायेगा तेरा पेट
मेरे दोस्तों क्या उम्र उम्र लगा रखी है
अब ये बोलो की क्या तुमने कभी चखी है
चखी है कभी उम्र की मिठास या नमकीनी
भूल जाओ नमक को भूल जाओ चीनी
भौतिक चीजें और रासायनिक प्रभाव
गिनते जाओ उम्र को तो बदलेगा स्वभाव
नमकीन मीठी तक ठीक है नहो कुछ और
मेरी बातों पर न करो अधिक गौर
बातें तो बातें हैं होती ही रहेंगी
आज न खरीदोगे तो कल मिलगी महँगी
महँगाई कब न थी कौन बताएगा
तब क्यों नहीं जमा की ये कौन बताएगा
मेहता जी नौछमी पोखरियाल सुरु हो जाय
फिर आपकी कुर्सी पक्की और गैरसेन राजधानी भि
जय उत्तराखंड
जय भारत
देश और समाज की बात यहाँ हुई
झंडे को लेकर भी यहाँ वहां हुई
सबसे बड़ा मेरा देश और उसका झंडा
न करोगे सम्मान तो पड़ेगा डंडा
मा और देश के नाम पर मजाक नहीं
सोचो सिपाही का जो सरहद पर है मजाक नहीं
सोचो उस मा का जिसका बेटा हमारी आजादी की कीमत रहा चुका
सर्द ठण्ड पर भी कम बेतन पर भी शांति की बात की कीमत रहा चुका
आओ हम सब मिल अरे उस जवान की स्तुति जय जवान जय जवान करें दें एक प्रस्तुति
सुन्दर जी आपकी कविता के तो हम फेन हैं
आपकी हम दिया आप लालटेन हैं
पर गुस्ताखी माफ़ लिखने की ललक हमने दीपक जी से पाई है
कुछा नहीं वो मेरे गुरु और आप भाई हैं
इस फटीचर कविता को दस्तावेज न समझाना
ये हमारी नादानी है गुस्ताखी न समझाना
दीपक जी सधे हुए न कहें अभी इस अनाड़ी को
मस्तक न आप पहले देखो मेरी नाड़ी को
दिल के बीमार को बुखार का इलाज न दो
बीमार हैं बिन खुजली के सल्फाज न दो
लगता है आप शब्द भेदी बाण के सिपाही हैं
जो दोगे गुरु है तो ये कला भि आपसे ही पाई है
हम अब आगे से सिंगल्स ही लेंगे
हर पारी में अब सून्य पर विकेट न देंगे

आप हमें धन्यबाद कहे, निशब्द हुए हैं हम

धन्यबाद के थे पात्र आप, गटक गए हम

जी खूब कहा आपने की, कमी थी स्याही में हमारी

कमल जी अनुभव जी हेम जी हिमांशु जी से क्षमा मिले

पंकज दा दयाल गुरु से गुजारिश करते ढेर सारी

मै गली छाप कवि, स्टेडियम का नहीं आभास

छक्का मारने गया, लपक लिया प्रथम प्रयास

Thursday, August 12, 2010

आपका अंदाजे बयां दिल में घर कर गया
छुट्टी तो मेरी हो चुकी पर मुझसे रहा न गया
दो आखर आपकी लेखिकी तो करूँ भेंट
पर डर है की बंद न हो जाये ऑफिस का गेट
शब्द आपकी उँगलियों पर निवास करते हैं
आपके मन की गति का अच्छा आभास करते हैं
यूँही लिखते रहें आप निरंतर इस मंच पर
हम भी लुफ्त उठायें जाने कविता आपके प्रपंच पर
आप खुद को क्या कहें ये रजा है आपकी
पर हम पर रही है मेहरबानी आपकी
हम तो इस मंदिर (मेरा पहाड़) में आपकी अमानत हैं
आपको अज्ञानी समझे फिर तो हम पर लानत है
इस मंच पर ला खड़ा किया हमें हम आपके सुक्र्गुजार है
कभी घर आइये आपकी खिदमत को हाजिर ये दिलदार है
इसे न समझिये आप हमारी हाजिर जबाबी
संकोच हया में हमें दिखाती है बहुत खराबी
झुक कर जो भि मिले उठा लिया करते हैं
उठाये में भूल हो तो सुधार लिया करते हैं
वजह न बने हम किसी की बेबसी की मालिक
तेरे दर पे हरदम वजह बेवजह सर टिकाया करते हैं
न हो इस सर पर हमें अभिमान
इसीलिए अक्सर हम स्कूल चले जाया करते हैं
दीपक जी दीपक जी कलम हमारी अभी नई है
इस्तेमाल नहीं अभी टेस्टिंग की गयी है
आप हमें भाई कहे बहुत बड़ी उपाधि दिए
हम खुस कम मायूस जियादा हुए
अब छोटे से ही ज्ञान लेंगे ये वचन दिए देते हैं
तुम दयाल जी को हम तुम्हे गुरु किये देते हैं
जो दयाल जी से मिले उसे हमें भी देते rahna
mil baat khaye गुरु chele itna ही हमें kahna
दीपक जी आपका जबाब नहीं, आप लाजबाब हैं ।
हम तो समझे थे आपको खिचड़ी, पर आप तो कबाब हैं ।
आपकी कविता हमारे भेजे में उतर गयी ।
पर ये महरी कविता के पर क़तर गयी।
हमरे लफ्ज पसंद न आयें तो गरमा न इएगा।
गुस्से में ही सही तो चार शेर फरमा इयेगा
जय हो
जय उत्तराखंड
जय भारत
कु भाग्यं होलू डांडियों मा कानी भानी बसूली बजाणू
होलू क्वी बिचारु मी जणू रुस्ल्यानी बांद मनाणू

Wednesday, August 11, 2010

Monday, August 9, 2010


महादेव सैन







भविष्य


आधारिक बिद्यालय चंदोली


आधारिक विद्यालय चंदोली


आधारिक विद्यालय चंदोली


दुनाव


दुनाव


दुनाव


दुनव