Monday, August 16, 2010

याद आती है मेरे पहाड़ की मुझे तो हर रोज
कठिन है वहां का जीवन फिर पर न लगे बोझ
ठंडक हमेशा साथ निभाती न कोइ कसरत उकल उन्धार
सभी सगे साथी सभी अपने वहां कोइ इस धार कोइ उस धार
अब तो गाँव गाँव सुन्दर सड़क भी आ गयी है निकट
बूढ़े बीमारों की सेवा में करें उन्हें घुमाओ सरपट
फोन लगाओ जीप मांगो जब भी हो कहीं जाने का मन
गाँव जाते रहो घुमो पहाडों पर न कोई अब अड़चन

No comments:

Post a Comment