दीपक जी आपका जबाब नहीं, आप लाजबाब हैं ।
हम तो समझे थे आपको खिचड़ी, पर आप तो कबाब हैं ।
आपकी कविता हमारे भेजे में उतर गयी ।
पर ये महरी कविता के पर क़तर गयी।
हमरे लफ्ज पसंद न आयें तो गरमा न इएगा।
गुस्से में ही सही तो चार शेर फरमा इयेगा
जय हो
जय उत्तराखंड
जय भारत
Thursday, August 12, 2010
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