सुन्दर जी आपकी कविता के तो हम फेन हैं
आपकी हम दिया आप लालटेन हैं
पर गुस्ताखी माफ़ लिखने की ललक हमने दीपक जी से पाई है
कुछा नहीं वो मेरे गुरु और आप भाई हैं
इस फटीचर कविता को दस्तावेज न समझाना
ये हमारी नादानी है गुस्ताखी न समझाना
Friday, August 13, 2010
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