आप खुद को क्या कहें ये रजा है आपकी
पर हम पर रही है मेहरबानी आपकी
हम तो इस मंदिर (मेरा पहाड़) में आपकी अमानत हैं
आपको अज्ञानी समझे फिर तो हम पर लानत है
इस मंच पर ला खड़ा किया हमें हम आपके सुक्र्गुजार है
कभी घर आइये आपकी खिदमत को हाजिर ये दिलदार है
Thursday, August 12, 2010
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